Samleti blast case : मेरा परिवार मर चुका है, जेल में बिताए मेरे 23 साल कौन लौटाएगा...


By Saurabh Yadav

सोचिए आप 23 साल तक जेल में बंद रखे जाएं...कोई जमानत नहीं... कोई परोल नहीं...और फिर एक दिन अदालत आपको बरी कर दे..कह दे...कि आपको दोषी मानने के लिए सबूत ही नहीं हैं हमारे पास...जाइए आप आजाद हैं....तब आप क्या करेंगे...आप खुश होंगे इस बात से कि आप आजाद हैं या रोएंगे इस बात पर कि आपकी जिंदगी के 23 साल जेल में बीत गए...23 साल आपकी जिंदगी से हटा दिए गए इन 23 सालों में कितना कुछ हटा दिया गया आपकी जिंदगी से’’ जिसे आप सोच भी नहीं पा रहे वो कुछ लोगों पर बीती है...कहानी थोड़ी लंबी है और वैसे भी दर्द की कहानियाँ छोटी कब हुआ करती हैं-

42 साल के लतीफ़ अहमद बाजा, 48 साल के अली भट्ट, 39 साल के मिर्ज़ा निसार, 57 साल के अब्दुल गोनी और 56 साल के रईस बेग ये पांचों 1996 के समलेटी ब्लास्ट केस में आरोपी थे...इन्हें जून 1996 से जुलाई 1996 के बीच सज़ा हुई थी, तब से 22 जुलाई, 2019 तक इन पांचों को न तो कभी जमानत मिली और न ये परोल पर ही रिहा हुए,  इतनी सख़्त सज़ा झेलने के बाद अब जाकर पता चला कि इन लोगों ने कोई अपराध किया भी था कि नहीं, ये तय नहीं।कितना दिलचस्प है ना इन बेकसूर लोगों ने उस दौर में 23 साल बिना जमानत बिना परोल के बिता दिए जहां बलात्कार के दोषी को परोल दिलवाने के लिए सरकार भी कोशिश में नजर आती है, अभिनेता संजय दत्त कितनी ही बार जेल से बाहर आते हैं उम्रकैद पाए नेता पोते की सगाई में बाहर आ जाते हैं।


समलेटी ब्लास्ट केस का मुख्य आरोपी है डॉक्टर अब्दुल हामिद जिसे सज़ा-ए-मौत मिलनी तय हुई है..लेकिन लतीफ़, अली, मिर्ज़ा निसार, अब्दुल और रईस, ये पांचों भी हामिद के साथ शामिल थे, कोर्ट ने इस दलील को खारिज़ कर दिया।
जिस ब्लास्ट से जुड़ा है ये केस, वो 22 मई 1996 को हुआ था। जयपुर-आगरा हाई वे पर समलेटी गांव में बीकानेर से आगरा जा रही एक बस के अंदर धमाका हुआ था....जिसमें 14 लोगों की जान गई थी और 37 लोग घायल हुए। इस धमाके से एक दिन पहले ही दिल्ली के लाजपत नगर में भी ब्लास्ट हुआ था...जिसमें 13 लोग मारे गए थे,और CID  ने इन पांचों को भी केस का आरोपी बनाया. बताया गया कि ये सब जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट से जुड़े हुए हैं।सबकी अपनी-अपनी ज़िंदगियां थीं, कोई कालीन का कारोबारी, कोई हैंडीक्राफ्ट का व्यापार करता था, मिर्ज़ा निसार तो नौवीं में पढ़ते थे।
ये लोग जब पकड़े गए, तब ज़िंदगी कुछ और थी. अब जब वो छूटे हैं, तो बहुत कुछ बदल गया है,बीच के 23 सालों में दुनिया क्या से क्या हो गई है....1997 में क्रिकेट की दुनिया में तब खेलने वाली पूरी टीम संन्यास ले चुकी है और नए खिलाड़ी आ चुके हैं जो इन सभी ने पहली बार देखे हैं।तब से कितनी ही सरकारें आईं और गईं। कितना कुछ बदल गया, कितना कुछ चला गया इनकी जिंदगी से...

56 साल के रईस बेग बेहद अफसोस के साथ कहते हैं कि
हम जब जेल में थे, तो कितने रिश्तेदार गुज़र गए हमारे, मेरी मां, मेरे पिता, दो चाचा, सब चले गए दुनिया से, मेरी बहन की शादी हुई और अब उसकी बेटी की शादी होने वाली है। अब जाकर हमें बरी किया गया है। मगर जो साल बीच में बीते गए उन्हें कौन लौटा पाएगा?

57 साल के अब्दुल गोनी की बहन सुरैया कहती हैं-
उसकी जवानी बीत गई, हमारे मां-बाप मर गए, मेरे आंसू सूख गए, उसके लिए रोते-रोते मैं बूढ़ी हो गई।
42 साल के लतीफ़ अहमद बाजा अपनी बात मुस्कराते हुए कहते हैं लेकिन इस मुस्कराहट के पीछे सालों का दर्द उभर आता है-
बाजा अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करना चाहते हैं, शादी करना चाहते हैं, मगर फिर वो अपने गंजे सिर पर हाथ फेरते हुए अफसोस जताते हैं कि अब कौन लड़की उनसे शादी को राजी होगी?
39 साल के मिर्ज़ा निसार एक अनजान आदमी है। वह बहुत से रिश्तेदारों को तो पहचानते भी नहीं हैं क्योंकि कई हैं जो उनकी गिरफ़्तारी के बाद पैदा हुए और कई ऐसे हैं जो अब काफ़ी बड़े हो चुके हैं। अगर यह न्याय है तो हमने इस न्याय के लिए बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई है।"
अब जबकि ये पांचों बरी होकर रिहा हो गए हैं, सबसे बड़ा सवाल है कि उनके जीवन के 23 साल कहां गए? कहां गए का जवाब सबको मालूम है लेकिन उन 23 सालों के बर्बाद हो जाने का जिम्मेवार कौन है? कौन है, जिसकी जवाबदेही तय होगी? शायद किसी की नहीं होगी और ये सवाल यूहीं तैरते रहेंगे। आखिर में इस छोटे से वीडियो में अली भट्ट का दर्द भी महसूस कर लीजिए "जेल से छूटने के बाद वह सीधे क़ब्रिस्तान गए और वहां जाकर उन्होंने अपने अम्मी-अब्बू की क़ब्र को गले लगाया और जी भरकर रोए...23 साल...




----------------------------------------------------------------



लेख़क  सौरव यादव पेशे से पत्रकार हैं जो प्राइम न्यूज़, इंडिया न्यूज़ में कार्य कर चुकें हैं और वर्तमान में टोटल  न्यूज़ में अपनी सेवायें दे रहें हैं। सौरव देश के सभी मुद्दों पर अपनी राय रखतें हैं।
____________________________________________
हमारे यहां पत्रकार और पत्रकारिता दोनों ज़िंदा हैं और हमारी पत्रकारिता देश और देश की जनता को समर्पित है।
देश में पत्रकारिता के गिरते स्तर से परे हम पत्रकारिता को उन ज़रूरतमंद जनता के लिए कर रहें है जिनकी आवाज़ बड़े मीडिया संस्थानों तक पहुँच नही पाती। जिनकी आवाज़ को सरकार और प्रशाशन अनदेखा करते हैं हम उनकी आवाज़ बनने आ गए हैं।
#हम_हैं_भारत।
-------------------------------------------------------------------
आप हमें ईमेल कर सकतें हैं thejournalistadda@gmail.com पर और अपनी ख़बरें और राय भेज सकतें हैं।

Comments

Unknown said…
Bahoot achha hai sir
Rohit said…
Bigo Packers and Movers relocate within metro cities of India and Internationally, with best quality packing and secured transportation. Expertise in sophisticated equipments, data center, art, pets, car, office and household shifting.

http://bigopackersandmovers.com/

Popular posts from this blog

कैसा हाल होगा 2074-75 में में नदियों स्वरूप, तब भी आएगी बाढ़

कश्मीर बनकर रह गए हैं यूपी और एमपी के 8 लाख नौजवान, मुझे व्हाट्स एप कर रहे हैं।