हिमा के पिता चावल उगा रहे हैं और हिमा सोना !!
लेख़क - प्रशांत राय
"हिमा दास ने पहला गोल्ड जीत लिया"
"जी ये दूसरा वाला था"
"अब तीसरा"
"चौथा,
एंड हेयर क्मस दी फीफ्थ वन"
पता है इन सब के बीच क्या दब गया? उस आभागी लड़की का किस्मत जो देश के लिए 19 साल की उम्र से लगी पड़ी है लेकिन जब उसे जरुरत थी तो देश छोड़िए किसी ने साथ नही दिया था। आपने वो वीडियो देखा।
देखिए न कैसे भाग रही है!! सब भूल के, बस भारत को जिताना उसका एकमात्र मकसद है, आवाज सुनाई दे रही है आपको कंमेटेटर की, "सी कैन सी द लाईन, सी कैन सी द हिस्ट्री, ईंडिया हैज़ नेवर वोन एनी मेडल और तब तक वो सावंली सी लड़की जीत के लाईन को पीछे छोड़ देती है, सांवली सुन के जज़ तो कर लिए होंगे आप लेकिन जज़ करने से पहले ये जरुर सोचिएगा कि आप कैसे जज़ करते हैं लड़कियों को, खुद को धोखा दिए बना सोचिएगा। हिमा ने किस किस तारीख को मेडल जीता ये तो आप जानते होंगे, कहाँ कहाँ जीता है ये भी आप जानते होंगे लेकिन उस पाँच जीत के पीछे की कहानी शायद आप नही जानते होंगे।
असम के नंगाव जिले के धींग गाँव की है वो, बचपन में फुटबॉल खेलती थी, पैसो के कारण आगे नही खेल पाई। फिर स्कुल के एक सर, शमसुल शेख ने दौड़ने की सलाह दी, दौड़ना इसलिए आसान था क्योंकि उसमें कुछ लगता नही है, खाली पैर भी दौड़ लो। वो दौड़ने लगी, खेत मे दौड़ती थी, पिता रणजीत दास चावल की खेती करते हैं और बेटी आजकल सोना उगाने मे लगी है। जो सोना वो अभी उगा रही है, उसके लिए बहुत जली है वो, कभी बिना जूतों के तो कभी सिर्फ मछली चावल खाकर लेकिन अभी लूटियंस दिल्ली से लेकर पूरा भारत उसपर अपना अपना दावा कर रहा है लेकिन जब वो तप रही थी तो शायद ही कोई हिमालय जैसी बड़ी उस हिमा को जानता हो।
वो जो कहते हैं कि गुरु का मतलब क्या होता है, या जिन्होने किसी को ये कहते सुना है कि मैं इसको स्टार बना दूँगा, उनको ये पैरा पढ़ना चाहिेए। नाम है निपुण दास, असम के खेल कल्याण निदेशालय मे एथलेटिक्स के कोच, नज़र उस तेज दौड़ती धावक पर पड़ी जिसमे गुण तो सब थे, बस कोई निखारने वाला चाहिए था। दास ने वाकई हिमा को हिमालय जितना बड़ा कर दिया, इतना बड़ा की निपुण से ज्यादा हिमा की चर्चा हो रही है, पैसा दिया, गोवहाटी मे रुम दिलवाया, ट्रेनिंग दी और वो सबकुछ दिया जो उसे हिमालय बनाने मे मदद करता। एक बार तो दास साहब गोवहाटी से 150 कि. मी. सफर करके हिमा के घर सिर्फ इसलिए गए क्योंकि हिमा विदेश मे कही ट्रेनिंग कर रही थी और उसे अपने घरवालों से बात करने की ईच्छा थी, दास साहब को लगा कि अगर बात नही करेगी तो ढंग से ट्रेनिंग नही हो पाएगा, सो वो गोवाहटी से हिमा के घर गए ताकि हिमा को बात करवा सके। आज हिमा दनादन गोल्ड ला रही है, बिना रुके, अनेक दावों के बीच की हिमा मेरी खोज है, हिमा खुद मे अपना पहचान बना रही है, अपने आप को निखार रही है, ये कह रही है कि देखो गौर से....
मेरे पिता चावल उगाते हैं और मैं सोना।

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