उन्नाव रेप पीड़िता इंसाफ़ की बली चढ़ गई, अब कितना फ़र्क़ पड़ेगा इस समाज को उसकी मौत से और क्या आरोपी विधायक अब बरी हो जाएगा?
By Prashant Rai
सच में समाज बट गया है बे हमारा!! आज हमको लगा कि वाकई कुछ तो है जो हम लोगों को अलग कर रहा है। अरे हम यहां हिंदू मुस्लिम एकता की बात नहीं कर रहे हैं, हमको करने में कोई रुचि भी नहीं है, लेकिन हां ये देखा कि वो तथाकथित लोग जो कभी मुस्लिम को रगड़ते हैं तो कभी हिंदू को, लेकिन साला एक बात समझ में नहीं आया, उनके रगड़ने के पीछे उनका अपना स्वार्थ क्यों होता है? हम पत्रकार बनते ही नहीं तो ठीक रहता!!! हम भी ऐसे ही करते, जो मेरे स्वार्थ का होता उस पर लिखते, जो मेरे स्वार्थ का नहीं होता, उस पर नहीं लिखते। धड़ा बटा हुआ है, आज सुबह से लगभग 120 पोस्ट देखे, इसलिए शाम मे लिख रहे हैं। उस 120 पोस्ट में 80 पोस्ट मुसलमान का था, जो उन्नाव की बेटी के लिए दुहाई दे रहे थे। साफ-साफ लिख रहे हैं, कुछ लोग मजे भी ले रहे होंगे कि देखो न, बीजेपी के एक नेता ने हिंदू का बलात्कार किया है तो हिंदू लोग बोल नहीं रहे हैं। मैं यहां किसी एक आदमी के प्रति नहीं लिख रहा हूं, बस बता रहा हूं कि आज मुझे महसूस हुआ कि हां हम बटे हुए हैं!!! या हम बांट दिए गए हैं!!! इसका अंतर समझने की कोशिश कीजिएगा।
घटना आपको पता है.....
हम तो बॉलीवुड फिल्म मे ऐसा देखे थे, बाप को मार दिया, फिर पुलिस को दे दिया, बाप मर गया। बेटी चीफ मिनिस्टर के घर के बाहर जा कर आत्मदाह कर रही है। चाचा रायबरेली की जेल में बंद है। पीड़ित का एक्सीडेंट हो गया, एक्सीडेंट करने वाली गाड़ी के नंबर पर कालिख पुती हुई थी। लोग कह रहे हैं सीबीआई की जांच होगी। फिल्म में भी यही होता है, सिर्फ पैसा खिला दिया जाता है खेल समाप्त हो जाता है। 25 साल के बाद फिर कोई डीएसपी आकर खेल शुरू करता है, उस वक्त तक कुलदीप साहब अपनी जिंदगी के सारे मजे लूट लिए होंगे। बचे कुछे 13 दिन जाकर वो जेल में बिता लेंगे, फिर वो भी मर जाएंगे और हमारा समाज गया तेल लेने, हमारा नियम गया तेल लेने और हम भी गए थे तेल लेने। जी यही है हमारा नया भारत, जी डिजिटल भारत!! अरे मैं मोदी जी पर तंज नहीं कर रहा हूं, बस लिखने का मन कर रहा है तो लिख दिया, हो सकता है मेरा भी इसमें कोई स्वार्थ जुड़ा हो, लेकिन साला आखिर हम इतने स्वार्थी हो कैसे सकते हैं??
जानते हैं दिक्कत क्या है, दिक्कत ये है कि हम सिर्फ ये चाहते हैं कि हमारे समाज के किसी लोग को कुछ नहीं हो, दिक्कत ये है कि राजनेता कुर्सी पर बैठकर कुछ भी कर सकता है और उसे संरक्षण मिलता रहेगा। दिक्कत ये है कि हम सिर्फ वो आम लोग हैं जो वोट देकर अपनी मौजूदगी का सिर्फ सबूत दे सकते हैं लेकिन अपनी मौजूदगी का एहसास नहीं करा सकते हैं। बहुत दिक्कत है, कितना लिखे, आपको पढ़ने का मन नहीं करेगा। वैसे भी लोग आजकल फेसबुक का 3 लाइन का पोस्ट पढ़ते हैं!! चार पैराग्राफ का आर्टिकल पढ़ने का फुर्सत किसे है? और सही करते हैं आप, मत पढ़िए, कोई फायदा नहीं है। कुछ नहीं होने वाला है, वो किसी पार्टी में चला जाएगा, भाजपा निकालेगा तो कोई और अपना लेगा। आप चिंता मत करिए, आपकी बेटी सुरक्षित है, आपको खाना मिल रहा है और जी हमारा देश 5 लाख ट्रिलियन के अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है।।
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प्रशांत राय युवा लेखक हैं कई मीडिया संस्थानों के साथ काम कर चुके हैं और देश के अलग-अलग मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं।
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