विनोद और साक्षी की पीहू ने दुनियां को कहा अलविदा......
14 जून को एक नवजात बच्ची का वीडियो वायरल हो रहा था जो कूड़े के ढेर में रो रही थी, किसी ने अपलोड किया था, मेरी तरह हज़ारों लोगों ने वीडियो देखा भी कमैंट्स भी किया, लेकिन तब तक किसी को नही पता था कि वो बच्ची कहाँ की है या वो वीडियो कहा कि है, सब ने लगभग अफ़सोस जताया था और इसे अमानवीय बात था लेकिन हमारे इसी समाज मे से ईश्वर की कृपा से दो ज़िंदा इंसानों @sakshi Joshi और @vinod kapri की नज़र भी इस बच्ची पर पड़ ही गयी और इन दोनों लोगों ने अपने प्रयास से इस बच्ची का पता लगा लिया और फिर इस बच्ची के इलाज़ के लिए हर सम्भव कोशिश करनी शुरू की दिया।
इसके बाद बच्ची को नागौर के छोटे से अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसका 2 हफ़्ते तक इलाज चलता रहा, लेकिन बच्ची की सेहत सुधरने के बजाय और बिगड़ गयी और लगातार बिगड़ती ही चली गई, इसके बाद विनोद कापड़ी और उनकी पत्नी साक्षी जोशी के लगातार प्रयासों के बाद उसे नागौर से जोधपुर भेज गया लेकिन यहां भी उसकी तक़लीफ़ कम होने के बजाय और बढ़ गयी, लगातार विनोद जी प्रयास करने पर राजस्थान सरकार ने उसे जयपुर के JK LON अस्पताल भर्ती करवाया। उसका इलाज JK LON अस्पताल के MS डॉ अशोक गुप्ता .. डॉ विष्णु , डॉ चटर्जी , डॉ पुनीत के देखरेख में शुरू हुआ।
विनोद जी अपने फ़ेसबुक वॉल पर लिखते हैं कि
उसकी एक आँख खुली और दाएँ बाएँ घूमने लगी।वो कुछ तो ढूँढ रही थी। 25 दिन की बच्ची आख़िर क्या ढूँढ सकती है ? क्या उसे कुछ दिखता भी है , जिसे वो ढूँढना चाहती है ? शायद कुछ धुँधले से चेहरे।उसकी क़िस्मत की तरह।लेकिन यही वो कुछ धुँधले से चेहरे हैं जो उसकी ज़िंदगी की डोर को थामे हुए हैं। बहुत कस कर। जयपुर के JK LON अस्पताल के सर्जरी विभाग के ICU में हमारी 25 दिन की बच्ची पीहू बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रही है। ऐसी लड़ाई, जिसकी हम सब कल्पना तक नहीं कर सकते।
शनिवार शाम ( 6 जुलाई ) तक सब कुछ ठीक नहीं था। लेकिन डॉक्टरों की टीम ने बड़ा फ़ैसला कर लिया था। बच्ची की सर्जरी का। कल जब मैं पहली बार JK LON के बेहद क़ाबिल मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ अशोक गुप्ता से मिला तो उन्होंने बताया कि आँतों में इंफ़ेक्शन इस क़दर बढ़ गया है कि सारी आंते उलझ गई हैं।शरीर के जिस हिस्से से stool pass होना चाहिए , वहाँ से ना हो कर मुँह से हो रहा है। Infection रोकने के लिए दी जा रहीं anti biotics काम नहीं कर रही हैं।अब उपाय बस एक ही है कि जल्द से जल्द सर्जरी की जाए।रविवार ( 7 जुलाई )आज सुबह 9.30 बजे का वक्त तय हुआ।डॉक्टरों की पूरी टीम सर्जरी के लिए 8.30 बजे ही पहुँच गई थी।सर्जरी से पहले के सारे ज़रूरी टेस्ट किए जाने लगे । Anaesthesia की तैयारी शुरू हुई और फिर तक़रीबन सुबह 9 बजे आई एक बुरी ख़बर ... बच्ची के Platlett count गिर कर 8000 तक पहुँच गए हैं और कम से कम आज तो सर्जरी नहीं हो सकती है। वो सर्जरी , जिसका आज होना बेहद ज़रूरी था।डॉक्टरों की टीम दुखी थी।लेकिन साथ ही उन्हे विश्वास भी था कि ये बच्ची लड़ाका है .. अभी और लड़ेगी और खुद को तैयार कर लेगी ऑपरेशन के लिए .. तभी
JK LON अस्पताल के ICU में पीहू की उम्र के ही 25-30 बच्चों में से एक बच्चे के रोने की आवाज़ आई .. पाँच सेंकेंड के अंदर दूसरा बच्चा रोने लगा .. और फिर तीसरा .. और चौथा .. मानों सब अपनी इस बच्ची के साथ खड़े हो गए हों।
पीहू की बीमारी बेहद गंभीर है।ऑपरेशन ही एकमात्र सहारा है।वो लगातार वेंटिलेटर के सपोर्ट पर है। आधे फ़ीट जितने शरीर को चारों तरफ से तारो ने जकड़ा हुआ है।इतनी तारें कि उसमें शरीर दिखता तक नहीं।आज तो पेट के पास एक पाइप लगा कर drain बना दिया है ताकि उसका stool उस पाइप के ज़रिए शरीर से बाहर आ सके। सोचिए , इतनी छोटी सी बच्ची को क्या क्या देखना पड़ रहा है।
इन सब के बीच विनोद जी कुछ ऐसा देखते हैं जिससे वो बेचैन हो उठते हैं और कुछ सवालों के साथ आगे लिखतें हैं-
जयपुर पहुँचने के बाद बच्ची के नाम के आगे फिर से लिख दिया गया है : Unknown baby ... CARA के सीईओ ने तो ट्विट करके कहा था कि बच्ची को गंगा के नाम से रजिस्टर किया गया।कम से कम unknown baby की जगह कोई गंगा ही लिखवा देता। पर मायने ये नहीं रखता कि उसका नाम क्या हो ? मायने ये रखता है कि 25 दिन बाद भी उसे Unknown baby क्यों लिखा और पुकारा जा रहा है ? और इसी बहाने मैं देश में गोद लेने के क़ानून पर कुछ गंभीर सवाल उठाना चाहता हूँ। क़ानून के मुताबिक़ जब तक बच्ची या बच्चे को परिवार नहीं मिल जाता ,वो सरकार के संरक्षण के रहेगा/रहेगी।क्या कोई बता सकता है सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर अस्पताल में या बच्ची के पास, कोई एक इंसान कभी रहता है क्या ? एक भी इंसान ?
वो भी तब जब बच्ची गंभीर हो। हमारे आपके बच्चे बीमार होते हैं।पूरा का पूरा परिवार दिन रात अस्पताल में पड़ा रहता है। 24 घंटे। लगातार। लेकिन इस बच्ची और ऐसी लाखों बच्ची जो Unknown baby हैं , उनके लिए अस्पताल के बाहर खड़ा होने वाला कौन है ? कोई नहीं। एक भी नहीं। वो काग़ज़ में दर्ज एक Unknown baby है और इसीलिए उसके आसपास सारे Unknown ही घूम रहे हैं।विडंबना ये है कि जो कोई बच्ची के साथ या पास खड़ा भी होना चाहता है , तो वो खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि क़ानून इसकी इजाज़त नहीं देता है। इससे ज़्यादा दुखद और क्या होगा ?
ये गोद लेने का ही क़ानून का ही असर है कि बच्ची का दो हफ़्ते तक नागौर के छोटे से अस्पताल में इलाज चलता रहा , उसकी हालत बिगड़ती ही चली गई । ये भी गोद लेने का क़ानून का ही असर है कि उसे नागौर से जयपुर ना भेजकर जोधपुर भेजा गया और जोधपुर को भी 24 घंटे ही समझ आ गया कि हालात ठीक नहीं हैं।और ये भी गोद लेने का क़ानून का ही असर है कि आज जब बच्ची जयपुर में है तो बुरी तरह इंफ़ेक्शन में जकड़ी हुई है और जो सर्जरी एक हफ़्ते पहले हो जानी चाहिए थी , वो अब पता नहीं कब होगी ? गोद लेने के इस क़ानून में पहले दिन से ही कोई इंसान क्यों नहीं जुड़ जाता जो बच्चे के बारे में फ़ैसले ले सके ? एक नवजात बच्चे को भी सरकार सिर्फ एक फ़ाइल क्यों मान लेती है कि जैसे फ़ाइल आगे बढ़ती रहती है , वैसे ही बच्चे भी बढ़ जाएँगे ? वो भी इतने छोटे और गंभीर बीमार बच्चे ? क्या कोई एक भी व्यक्ति , विभाग , एजेंसी बताएगी कि पीहू या इस जैसे बच्चे ऐसे हालात तक क्यों पहुँचते हैं कि वो सर्जरी के लायक भी नहीं रही ?
आज जब उसने एक आँख खोलकर चारों तरफ देखा तो शायद वो भी यही सब पूछ रही थी। मैं किसी की भी मंशा और नीयत पर सवाल नहीं उठा रहा।सब अपनी तरफ से लगे हुए हैं।सवाल ये कि इस देरी और देरी से उपजे हालात का ज़िम्मेदार कौन है ? अगर लावारिस बच्चो को गोद लेने के क़ानून में कुछ कमियाँ है तो उसे सुधारा जाए और पहला सुधार तो तुरंत ये होना चाहिंए कि अगर किसी बच्चे को तुरंत अस्थायी Guardians या foster parents मिल रहे हैं तो क़ानूनी लिखा पढ़ी करके बच्चे/बच्ची को तुरंत ऐसे parents को सौंप देना चाहिंए .. भले ही ये व्यवस्था अस्थायी क्यों ना हो।
इस बच्ची को गोद लेने के लिए हमने अपनी तरफ से प्रक्रिया पूरी कर ली है।लेकिन गोद लेने के क़ानून की जो प्रक्रिया है उसके मुताबिक़ इस बच्ची को कम से कम एक डेढ़ साल तक परिवार नहीं मिलने वाला। तो तब तक क्या होगा ? तब तक वो बीमार होगी या गंभीर होगी तो अस्पताल के एक कोने में यूँ ही पड़ी रहेगी ? तब तक उसे डॉक्टरों के अलावा देखने कोई नहीं आएगा ? नागौर की इस छोटी सी बच्ची ने ये कुछ बड़े सवाल खड़े किए हैं । जिसके जवाब ढूँढने बेहद ज़रूरी हैं।
लेक़िन ये बात 6 और 7 तारिक़ की है जब विनोद इस बच्ची से मिले थे, डॉक्टरों की टीम से मिले थे।
लेकिन आज 8 जुलाई की सुबह विनोद की मासूम पीहू अपने जीवन जीने की लगातार कोशिशों की 25 दिन लंबी जंग हार गई। असहनीय दर्द से आज़ाद हो गयी पीहू। अब नही रही पीहू।
लेक़िन पीहू जाते जाते सरकार और समाज़ को खुद के ऊपर शर्म करने को मज़बूर कर के चली गयी है।
पीहू इस सरकार और समाज के कुंठित मानसिकता के ख़िलाफ़ सवाल कर के गयी है जो विनोद के इस पोस्ट के ज़रिए इस पूरे सिस्टम, सत्ता और समाज़ से पूछे गयें हैं।
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अनिल शारदा
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