मैं हवा हूँ .........बस यूँ ही चलती हूँ ।।
By अर्चना पांडेय
मैं हवा हूँ ....
अनवरत रात-दिन, बेवजह चलती हूँ
कभी शब्दों में खामोशियां लिये
कभी गूँजों में झकझोर लिये
कभी झंकार सा शोर लिये
कभी बूँदो का स्रोत लिये
हर रुप में निखरती हूँ
हर रंगों में सजती हूँ
मैं हवा हूँ ........
एक झोंके से बहती हूँ
कभी गलियों से गुजरती हूँ
कभी सड़कों पर चलती हूँ
उफान सी छतों से टकराती हूँ
कभी वृक्षों को सहलाती हूँ
कभी अग्नि की ज्वाला बढ़ाती हूँ
कभी देह की अग्नि घटाती हूँ
मैं हवा हूँ .......
हर पल हर क्षण बेवजह चलती हूँ
प्रतिपल गतिमान रहती हूँ
हर गली हर नुक्कड़ का कचरा उठाती हूँ
धरा को स्वसांसो से सजाती हूँ
निर्जीवों को सजीव बनाती हूँ
उद्यानों में प्राण लाती हूँ
माटी से पुलो का निर्माण करती हूँ
मैं हवा हूँ ......
कर्तव्य -पथ पर सदैव गतिमान रहती हूँ
ना रुकती हूँ, ना थकती हूँ, ना जलती हूँ, ना मिटती हूँ
कभी धीमी तो,कभी तीव्र रफ्तार से चलती हूँ
किसी से कुछ लेती नहीं, सदैव देती हूँ
फिर भी आरोपग्रस्त हूँ, "हवा उड़ाकर ले गयी"
मैं हवा हूँ ......
जब धीमी चलती हूँ
तो मनुजों के हृदय में प्रेम बनकर उमड़ती हूँ
जब तीव्र रफ्तार पकड़ती हूँ
तो आँधी, तूफानों से आरोपित होती हूँ
मैं सदैव सक्रिय रहती हूँ
फिर भी कलंकित होती हूँ
ना कुछ कहती हूँ, ना कुछ सुनती हूँ
खामोश फिजाओं में गूँजती हूँ
मैं हवा हूँ .........बस यूँ ही चलती हूँ

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