मंदी की चपेट में आने से भारत में दनादन जा रही हैं नौकरियां



By Anil Sharda 


भारत आर्थिक मंदी से जूझ रहा हैं और भारी पैमाने पर जूझ रहा हैं. वो अलग की बात हैं की इस बात को सरकार हरसंभव छुपाने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन सच यही हैं की भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकदी का संकट छाया हुआ हैं.
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि जून 2019 के बाद आर्थिक गतिविधियों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती और बढ़ रही है.
मंदी का आलम ये हैं के लगातार भारत में नौकरियों की कमी बढती जा रही हैं... एक तरफ नये रोजगार पैदा नही हो रहे तो दूसरी तरफ रोजगार छिन्न रहें हैं..
भारत के निर्यात सेक्टर में पिछले चार साल(2014-18) में औसत वृद्धि दर कितनी रही है? क्या कभी आपने गौर किया.. नही किया तो मैं बता देता हूँ.. यह औसत वृद्धि दर 0.2 प्रतिशत की रही हैं. 2010 से 2014 के बीच विश्व निर्यात प्रति वर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था तब भारत का निर्यात प्रति वर्ष 9.2 प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा था. वहां से घट कर हम 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर पर आ गए हैं.
वही सबसे ज्यादा अगर नौकरिया जहा जा रही हैं या जाने वाली हैं वो सेक्टर भारत का ऑटो सेक्टर हैं.. . आपको बता दें की भारत का ऑटो सेक्टर इस समय भयंकर मंदी की चपेट में है. इस क्षेत्र के लाखों लोगों की नौकरीयां दांव पर लगी है. पिछले 3 माह में यहां काम कर रहे 2-3 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं. यदि समय रहते सरकार ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो स्थिति और भयावह रूप ले सकती है.... मंदी का असर कितना भयावह है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन महीनों में ही ऑटो सेक्टर में 10 से 15 प्रतिशत के करीब बिक्री में कमी आई है. फेडरेशन ऑफ़ ऑटो डीलर्स एसोसिएशन का कहना है की मंदी की वजह से पिछले तीन महीने में दो लाख से ज्यादा लोगों की नौकरी जा चुकी है. बता दें कि जिन दो लाख लोगों की नौकरी गई है वो इस सेक्टर से सीधे तौर पर जुड़े हुए थे. ऑटो मोबाइल सेक्टर में 25 लाख से भी ज्यादा लोग सीधे तौर पर काम करते हैं जब की इतने के करीब लोग परोक्ष रूप से इस सेक्टर से जुड़े हुए हैं. देश के अंदर 26000 से ज्यादा ऑटोमोबाइल शो रूम हैं जिनमें से 271 से ज्यादा बंद हो चुके हैं. इन शो रूम में काम करने वाले 32000 से ज्यादा लोग अपना नौकरी खो चुके हैं. 
एक-एक करके सारे सेक्टर्स ढहते नजर आ रहे हैं, परसों तक हमें ऑटो सेक्टर की मंदी की मालूमात थी, कल पता चला कि टेक्सटाइल की हालत तो ऑटो इंडस्ट्री से भी बुरी है....
टेक्सटाइल इंडस्ट्री करीब 10 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है. साथ ही ये इंडस्ट्री किसानों के उत्पाद जैसे कपास, जूट वगैरह भी खरीदती है. यानी अगले साल तक कपास उत्पादक किसान भी इसकी चपेट में आ जाएगा.
लेकिन क्या यह आज अचानक आई समस्या है?…. नहीं न!.. दरअसल इस इंडस्ट्री की बदहाली की स्क्रिप्ट सालों पहले लिखी जा चुकी है. टेक्सटाइल उद्योग को भी चीनी सामान बर्बाद कर रहे हैं.
दरअसल चीन से कच्चा माल बांग्लादेश जाता है और वहां से वस्त्र के रूप में भारत आता है. चीन सरकार अपने निर्यातकों को 17 फीसदी की निर्यात छूट देती है. इससे चीनी वस्तुएं भारतीय वस्तुओं की तुलना में 5-6 फीसदी सस्ती होती हैं.
अब क्या है के बंगलादेश और भारत में समझौता हो रखा है कि बंगलादेश से आने वाले माल पर जीरो प्रतिशत ड्यूटी होगी. टेक्सटाइल इंडस्ट्री का उत्पादन 2018 में गिरकर 37.12 अरब डॉलर रह गया. जबकि वर्ष 2014 में यह 38.60 अरब डॉलर था. यही नहीं, इस दौरान आयात 5.85 अरब डॉलर से बढ़कर 7.31 अरब डॉलर हो गया है. इसका मतलब है कि जो भी उपभोग बढ़ा वह आयात के जरिए पूरा किया गया2017 में जीएसटी के लागू किये जाने से टेक्सटाइल इंडस्ट्री की कमर टूट गई. बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर के मुताबिक, कुछेक महीनों को छोड़कर अक्टूबर 2017 से परिधान निर्यात में लगातार गिरावट आयी, इसका मुख्य कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा, कुछ खास निर्यात प्रोत्साहन का बंद होना और मंदी को बताया गया.
भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष संजय जैन ने कहा कि जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद आयात शुल्क में काफी गिरावट देखी गई है. जिसने सस्ते आयात को प्रोत्साहित किया है…. इस सबसे लागत पर 6-7 प्रतिशत असर पड़ा, जिससे कपड़ा निर्माताओं के मुनाफे को सख्त चोट पहुंची.
यानी एक तरफ यहां के लोकल उद्योग को टैक्स लगाकर परेशानी में डाला गया, वहीं इसे तबाह करने के लिए इम्पोर्ट ड्यूटी भी कम कर दी गयी. यह खेल सबका साथ सबका विकास करने वाली हमारी मोदी सरकार ने खेला है...
आगे बढतें हैं और आपको बताते हैं की SBI चेयरमैन रजनीश कुमार क्या कह रहे हैं... रजनीश कुमार कहते हैं कि रेट कट की वजह से बैंकों के पास अब नकदी की कमी नहीं है, लेकिन लोन लेने वाले लोगों की संख्या में कमी आ गयी है. हर कोई लोन लेने से डर रहा है. लेकिन कर्ज की मांग कमजोर पड़ गयी है. मांग कमजोर पड़ने की वजह से उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन की जरूरत है.
वहीँ भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में जारी मंदी बहुत चिंताजनक है सरकार को ऊर्जा क्षेत्र और गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तुरंत हल करना होगा. उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए नये सुधारों की शुरुआत करनी होगी. समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में रघुराम राजन ने कहा कि भारत में जिस तरह जीडीपी की गणना की गयी है उस पर फिर से विचार करने की जरूरत है.
अब सुब्रमण्यम स्वामी ने इसका ठीकरा एक तरह से पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली पर फोड़ा हैं... सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा हैं के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के कार्यकाल में अपनायी गयीं गलत नीतियां अर्थव्यवस्था में सुस्ती के लिए जिम्मेदार हैं. मतलब की पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की नीतिया भारतीय अर्थव्यवस्था में आई कमी के लिए जिम्मेदार हैं... 
कमी किसकी हैं और आने वाले समय में क्या कुछ नीतियों में सुधर और बदलाव होंगे ये तो देखने वाला होगा लेकिन ये साफ़ हैं की भारत में नौकरियों पर लगातार संकट बढ़ता जा रहा हैं... नौकरिया जा रही हैं लेकिन इसकी परवाह सरकार को नही हैं... सरकार सिर्फ और सिर्फ टारगेट सेट करने में हैं और 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने में मशरूफ हैं...




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