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Showing posts from July, 2019

मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर आज आपके लिए हम लेकर आयें हैं उनके द्वारा लिखित एक कहानी जिसे सभी ने अपने स्कूल के दिनों में जरुर पढ़ा होगा

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उपन्‍यासकार सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती 31 जुलाई को बड़े ही उत्‍साह से मनाई जा रही है. इस खास मौके पर उनकी कहानी 'ईदगाह' पढ़कर अपनी यादें ताजा कर लीजिए... कहानी: ईदगाद रमज़ान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आई है. कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है. वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है. आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है. गांव में कितनी हलचल है. ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं. किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर से सुई-तागा लाने को दौड़ा जा रहा है. किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है. जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें. ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी. तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना,भेंट करना. दोपहर के पहले लौटना असंभव है. लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं. किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज़ है. रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे. इनके...

बीबीसी में जातीय संरचना को लेकर उठे सवालों पर बीबीसी लंदन मुख्यालय ने दिया जांच का भरोसा

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By  दीपांकर पटेल  ( NEWSLAUNDRY HINDI ) पिछले लगभग एक पखवाड़े से मीडिया के एक वर्ग और सोशल मीडिया पर बीबीसी हिंदी के पत्रकारों की जातीय-वर्गीय पहचान को लेकर कई तरह की बातें सुनने को मिली. न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक बीबीसी हिंदी में जातीय आधार पर होने वाले कथित भेदभाव को लेकर एक सामाजिक कार्यकर्ता तारिक अनवर ने बीबीसी के लंदन स्थित मुख्यालय को एक लंबा मेल लिखकर शिकायत की थी. न्यूज़लॉन्ड्री के पास वह पत्र मौजूद है. इसके जवाब में बीबीसी लंदन मुख्यालय से एक मेल भेजा गया जिसका मजमून कुछ यूं है, “बीबीसी हिंदी के संदर्भ में हमसे संपर्क करने के लिए आपने समय दिया, इसके लिए धन्यवाद. आपकी शिकायत की जांच एक योग्य टीम द्वारा की जा रही है, जल्द ही हम तय प्रक्रियाओं के तहत आपसे संपर्क करेंगे. हम इस मामले में आपके धैर्य की तारीफ करते हैं. हमसे संपर्क करने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद.” न्यूज़लॉन्ड्री के पास यह मेल भी मौजूद है. बीबीसी का जवाब यह अपने आप में महत्वपूर्ण बात है कि बीबीसी के लंदन स्थित मुख्यालय ने उस शिकायत की जांच करने का आश्वासन दिया है जिसके मुत...

मुंशी प्रेमचंद और राष्ट्रवाद

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8 जनवरी, 1934 को ‘हंस’ में प्रकाशित प्रेमचंद का यह लेख विकृत राष्ट्रवाद और पुरोहितवाद के नाभिनाल संबंध की व्याख्या करता है.   यह तो हम पहले भी जानते थे और अब भी जानते हैं कि साधारण भारतवासी राष्ट्रीयता का अर्थ नहीं समझता, और यह भावना जिस जागृति और मानसिक उदारता से उत्पन्न होती है, वह अभी हममें बहुत थोड़े आदमियों में आई है. लेकिन इतना जरूर समझते थे कि जो पत्रों के संपादक हैं, राष्ट्रीयता पर लंबे-लंबे लेख लिखते हैं और राष्ट्रीयता की वेदी पर बलिदान होने वालों की तारीफों के पुल बांधते हैं, उनमें जरूर यह जागृति आ गई है और वह जात-पांत की बेड़ियों से मुक्त हो चुके हैं, लेकिन अभी हाल में ‘भारत’ में एक लेख देखकर हमारी आंखें खुल गईं और यह अप्रिय अनुभव हुआ कि हम अभी तक केवल मुंह से राष्ट्र-राष्ट्र का गुल मचाते हैं, हमारे दिलों में अभी वही जाति-भेद का अंधकार छाया हुआ है. और यह कौन नहीं जानता कि जाति भेद और राष्ट्रीयता दोनों में अमृत और विष का अंतर है. यह लेख किन्हीं ‘निर्मल’ महाशय का है और यदि यह वही ‘निर्मल’ हैं, जिन्हें श्रीयुत ज्योतिप्रसाद जी ‘निर्मल’ के नाम से हम जानते हैं, तो...

उन्नाव रेप पीड़िता इंसाफ़ की बली चढ़ गई, अब कितना फ़र्क़ पड़ेगा इस समाज को उसकी मौत से और क्या आरोपी विधायक अब बरी हो जाएगा?

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By Prashant Rai सच में समाज बट गया है बे हमारा!! आज हमको लगा कि वाकई कुछ तो है जो हम लोगों को अलग कर रहा है। अरे हम यहां हिंदू मुस्लिम एकता की बात नहीं कर रहे हैं, हमको करने में कोई रुचि भी नहीं है, लेकिन हां ये देखा कि वो तथाकथित लोग जो कभी मुस्लिम को रगड़ते  हैं तो कभी हिंदू को, लेकिन साला एक बात समझ में नहीं आया, उनके रगड़ने के पीछे उनका अपना स्वार्थ क्यों होता है? हम पत्रकार बनते ही नहीं तो ठीक रहता!!! हम भी ऐसे ही करते, जो मेरे स्वार्थ का होता उस पर लिखते, जो मेरे स्वार्थ का नहीं होता, उस पर नहीं लिखते। धड़ा बटा हुआ है, आज सुबह से लगभग 120 पोस्ट देखे,  इसलिए शाम मे लिख रहे हैं। उस 120 पोस्ट में 80 पोस्ट मुसलमान का था, जो उन्नाव की बेटी के लिए दुहाई दे रहे थे। साफ-साफ लिख रहे हैं, कुछ लोग मजे भी ले रहे होंगे कि देखो न, बीजेपी के एक नेता ने हिंदू का बलात्कार किया है तो हिंदू लोग बोल नहीं रहे हैं। मैं यहां किसी एक आदमी के प्रति नहीं लिख रहा हूं, बस बता रहा हूं कि आज मुझे महसूस हुआ कि हां हम बटे हुए हैं!!! या हम बांट दिए गए हैं!!! इसका अंतर समझने की कोशिश कीजिएगा। ...

Samleti blast case : मेरा परिवार मर चुका है, जेल में बिताए मेरे 23 साल कौन लौटाएगा...

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By Saurabh Yadav सोचिए आप 23 साल तक जेल में बंद रखे जाएं...कोई जमानत नहीं... कोई परोल नहीं...और फिर एक दिन अदालत आपको बरी कर दे..कह दे...कि आपको दोषी मानने के लिए सबूत ही नहीं हैं हमारे पास...जाइए आप आजाद हैं....तब आप क्या करेंगे...आप खुश होंगे इस बात से कि आप आजाद हैं या रोएंगे इस बात पर कि आपकी जिंदगी के 23 साल जेल में बीत गए...23 साल आपकी जिंदगी से हटा दिए गए इन 23 सालों में कितना कुछ हटा दिया गया आपकी जिंदगी से’’ जिसे आप सोच भी नहीं पा रहे वो कुछ लोगों पर बीती है...कहानी थोड़ी लंबी है और वैसे भी दर्द की कहानियाँ छोटी कब हुआ करती हैं- 42 साल के लतीफ़ अहमद बाजा, 48 साल के अली भट्ट, 39 साल के मिर्ज़ा निसार, 57 साल के अब्दुल गोनी और 56 साल के रईस बेग ये पांचों 1996 के समलेटी ब्लास्ट केस में आरोपी थे...इन्हें जून 1996 से जुलाई 1996 के बीच सज़ा हुई थी, तब से 22 जुलाई, 2019 तक इन पांचों को न तो कभी जमानत मिली और न ये परोल पर ही रिहा हुए,  इतनी सख़्त सज़ा झेलने के बाद अब जाकर पता चला कि इन लोगों ने कोई अपराध किया भी था कि नहीं, ये तय नहीं।कितना दिलचस्प है ना इन बेकसूर लोगों ने उ...

ये फ़ोटो देख रहे हो? वीर चक्र पाने वाले इस शख़्स ने कारगिल में 'देश के लिए' जान की बाज़ी लगाई थी

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By SANCHITA PATHAK ( ScoopWhoop) भारत कारगिल विजय दिवस की 20वीं सालगिरह मना रहा है. 26 जुलाई, 1999 को भारतीय सेना ने दुश्मनों को भारतीय सीमा के बाहर खदेड़ दिया था. भारतीय सेना के प्रति सम्मान और आभार दिखाने के लिए हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. मई 1999 और जुलाई 1999 के बीच कारगिल युद्ध, कश्मीर के कारगिल में लड़ा गया. भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को देश की सीमा से दूर भगाने के मिशन को नाम दिया, 'ओपरेशन विजय'. फरवरी, 1999 में लाहौर डेक्लरेशन हस्ताक्षर करने के बावजूद पाकिस्तान ने अपनी सेना को सीमा पार घुसपैठ करने के लिए भेजा.    पाकिस्तानी सेना को हराने में कई वीर जवानों का अहम योगदान था. ऐसे ही एक जवान हैं, सत्पाल सिंह.  Source:  Indian Express संगरूर ज़िले में हेड कॉन्सटेबल सत्पाल सिंह भवानीगढ़ इंटरसेक्शन पर ट्रैफ़िक संभालते हैं. 2 0 साल पहले सत्पाल सिंह भारतीय सेना में, सिपॉय थे. टाइगर हिल पर उन्होंने पाकिस्तान के Northern Light Infantry के कैप्टन कर्नल शेर ख़ान और तीन अन्य सिपाहियों को मार गिराया. शेर ख़ान ...

सोनभद्र नरसंहार के खलनायक कौन? किस-किस की जवाबदेही सोनभद्र के नरसंहार से जुड़ी है.

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उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में खेतिहर आदिवासियों के हुए नरसंहार की घटना ने देश के लोगों को भयभीत किया है. वही सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस नरसंहार के लिए कांग्रेस की पुरानी सरकारों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि इस विवाद की शुरुआत 1950 के दशक में कांग्रेसी सरकार के दौरान ही हो गई थी. और इस हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त समाजवादी पार्टी से जुड़ा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये दावा सोनभद्र के उम्भा गांव में किसी के गले नहीं उतर रहा है. इस गांव के ग्रामीणों के अनुसार सोनभद्र कांड को अंजाम देने वाले कई किरदार हैं. इन किरदारों में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, राजस्व अधिकारी से लेकर जमीन खरीदें तथा बेचने वाले सभी की भूमिका है. अब देखना यह है कि सूबे की सरकार की लापरवाही से जनचर्चा बन गये इस कांड के असली दोषियों के खिलाफ योगी सरकार क्या कठोर एक्शन लेकर उन्हें सजा दिलवाती है? वास्तव में योगी सरकार के दो साल के शासन में सोनभद्र का नरसंहार सूबे की सरकार के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़ा करने वाली यह पहली घटना है. सोनभद्र के जिस उम्भा  गांव में दिनदहाड़े फ़िल्मी अं...

न जाने किस ओर मुड़ रहा है कोई रोको मेरा देश फिर बट रहा है...

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By सपना शुक्ला जगनमोहन रैड्डी ने एक ऐलान किया कि अब आंध्रप्रदेश की कंपनियों में 75 फीसदी आंध्रप्रदेश के लोगों को नौकरी मिलेगी..... इसी के साथ एक  बात जो स्पष्ट हो गई वो है कि अगर आप बिहारी हैं तो भूल से भी नौकरी के लिए आंध्रप्रदेश कि तरफ ना देखें, अगर आप यूपी से हैं तो आप भूल जाईये आंध्रप्रदेश का रास्ता, अगर आप मध्यप्रदेश से हैं तो भूल जाइये.... सौ की एक बात अगर आप आंध्रप्रदेश के अलावा किसी भी औऱ राज्य से हैं तो आप आंध्र में केवल 25 फीसदी की नौकरी की लड़ाई में ही खुद को शामिल करें........ कितनी लड़ाई लड़ी थी गांधी जी ने एक भारत का सपना देखा गया था...... कितनी लड़ाई  लड़ी शहीद भगत सिंह ने कि इस देश के टुकड़ें नहीं होने चाहिए... नेहरू जी ने कितनी मुश्किलों के साथ इस कई रियासतों के देश को एक बनाया था...... लेकिन अफसोस है कि ये देश एक बार फिर बट रहा है, कभी मराठा कहता है कि उसको उसके हक चाहिए और उन प्रदर्शकरियों की भीड़ में उग्रवादी मिल जाते हैं....रेल रोको आंदोलन करते हैं तो सत्ता धारियों को अपनी कुर्सी हिलती दिखती है तो वो भी आरक्षण की भीख दे देते हैं, कभी पटेल समुदाय क...

आदित्य राजन के क़लम से - "करमनासा के जीत" (भोजपुरी कहानी)

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By आदित्य राजन जिनगी में बिना आस के अन्हरिया रात के मेयाद तनी लमहर होखेला, ओकरा बाद जब बादर फरछीन होखल सुरु होला, त अंजोर होत देरी ना लागेला बाकिर उ अंजोर कबो कबो ओह बीतल हहरत अन्हरिया रतियो से भूतहूँस लागेला...... ओहिदीन के बिहान कुछु एहि तरे भइल रहे, बुद्धन अपना मेहरारू आ छौ गो गेदा गेदी लइकन के साथे, मोटरा मोटरी कुछु कपार पर धइले, कुछु अपना पड़िया पर लदले, गांव से निकलत रहलें........। गांव.....ना...अब उ गांव कहां रह गइल रहे...जइसे सावन के राति में करिया बादर पुर्नवासी के चान के छन भर में ढाँप देला, ओहि तरे, गंडक के पानी बुद्धन के संहुसे गांव के कब तोप दिहलस, पते ना चलल ....बचि गइल रहे त खाली काली माई के उ बड़हन अथान जवन गांव के बहरी तनीं उचास पर रहे। रात के जब उत्तर कावर के बन्हा टूटल त गांव में हल्ला भइल...लोग ओहि राति खा, जवने पावल तवन लेके अथान की ओर भागे लागल, बुद्धन के घर से नदी सव डेग रहल... उनका दुआर पर जोड़ा बैल आ एगो पाड़ी बन्हाइल रहले सन, सोचले रहले जे उ जब बड़हन हो जाई त जवने दू पैसा के अमदनी बढ़ी, घर में खवईया हेतना हो गइल बाड़े आ कमवईया के ठेकाने नइखे।  दूर से प...